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HINDI : शà¥à¤°à¥€ रामचरितमानस के रचयिता गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ का जनà¥à¤® सनॠ१५६८ में राजापà¥à¤° में शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ शà¥à¤•à¥à¤² ॠको हà¥à¤† था। पिता का नाम आतà¥à¤®à¤¾à¤°à¤¾à¤® और माता का नाम हà¥à¤²à¤¸à¥€ देवी था। तà¥à¤²à¤¸à¥€ की पूजा के फलसà¥à¤µà¤°à¥à¤ª उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤¤à¥à¤° का नाम तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ रखा गया। पतà¥à¤¨à¥€ रतà¥à¤¨à¤¾à¤µà¤²à¥€ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अति अनà¥à¤°à¤¾à¤— की परिणति वैरागà¥à¤¯ में हà¥à¤ˆà¥¤ अयोधà¥à¤¯à¤¾ और काशी में वास करते हà¥à¤ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ ने अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ लिखे। चितà¥à¤°à¤•ूट में हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी की कृपा से इनà¥à¤¹à¥‡ राम जी का दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ काशी और अयोधà¥à¤¯à¤¾ में (संवतॠ१६३१) \'रामचरितमानस\' और \'विनय पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा\' की रचना की। तà¥à¤²à¤¸à¥€ की \'हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ चालीसा\' का पाठकरोड़ो हिनà¥à¤¦à¥‚ नितà¥à¤¯ करते हैं। तà¥à¤²à¤¸à¥€ घाट पर ही निवास करते हà¥à¤ शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ शà¥à¤•à¥à¤² तीज को राम में लीन हो गये। गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ जी को महरà¥à¤·à¤¿ वालà¥à¤®à¥€à¤•ि का अवतार माना जाता है। उनका जनà¥à¤® बांदा जिले के राजापà¥à¤° गाà¤à¤µ में à¤à¤• सरयू पारीण बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ परिवार में हà¥à¤† था। उनका विवाह सं. १५८३ की जà¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤ शà¥à¤•à¥à¤² तà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤¦à¤¶à¥€ को बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¤à¥€ (या रतà¥à¤¨à¤¾à¤µà¤²à¥€) से हà¥à¤†à¥¤ वे अपनी पतà¥à¤¨à¥€ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पूरà¥à¤£ रà¥à¤ª से आसकà¥à¤¤ थे। à¤à¤• बार जब उनकी पतà¥à¤¨à¥€ मैके गयी हà¥à¤ˆ थी उस समय वे छिप कर उसके पास पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ पतà¥à¤¨à¥€ को अतà¥à¤¯à¤‚त संकोच हà¥à¤† उसने कहा - हाड़ माà¤à¤¸ को देह मम, तापर जितनी पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¥¤ तिसॠआधो जो राम पà¥à¤°à¤¤à¤¿, अवसि मिटिहि à¤à¤µà¤à¥€à¤¤à¤¿à¥¤à¥¤ तà¥à¤²à¤¸à¥€ के जीवन को इस दोहे ने à¤à¤• नयी दिशी दी। वे उसी कà¥à¤·à¤£ वहाठसे चल दिये और सीधे पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ फिर जगनà¥à¤¨à¤¾à¤¥, रामेशà¥à¤µà¤°, दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤•ा तथा बदरीनारायण की पैदल यातà¥à¤°à¤¾ की। चौदह वरà¥à¤· तक के निरंतर तीरà¥à¤¥à¤¾à¤Ÿà¤¨ करते रहे। इस काल में उनके मन में वैरागà¥à¤¯ और तितिकà¥à¤·à¤¾ निरंतर बढ़ती चली गयी। इस बीच आपने शà¥à¤°à¥€ नरहरà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤œà¥€ को गà¥à¤°à¥ बनाया। गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के संबंध में कई कथाà¤à¤ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हैं। कहते हैं जब वे पà¥à¤°à¤¾à¤¤:काल शौच के लिये गंगापार जाते थे तो लोटे में बचा हà¥à¤† पानी à¤à¤• पेड़ेे की जड़ में डाल देते थे। उस पेड़ पर à¤à¤• पà¥à¤°à¥‡à¤¤ रहता था। नितà¥à¤¯ पानी मिलने से वह पà¥à¤°à¥‡à¤¤ संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ हो गया और गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी सामने पà¥à¤°à¤•ट हो कर उनसे वर माà¤à¤—ने की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने लगा। गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने रामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी के दरà¥à¤¶à¤¨ की लालसा पà¥à¤°à¤•ट की। पà¥à¤°à¥‡à¤¤ ने बताया कि अमà¥à¤• मंदिर में सायंकाल रामायण की कथा होती है, यहाठहनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी नितà¥à¤¯ ही कोढ़ी के à¤à¥‡à¤· में कथा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ आते हैं। वे सब से पहले आते हैं और सब के बाद में जाते हैं। गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने वैसा ही किया और हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी के चरण पकड़ कर रोने लगे। अनà¥à¤¤ में हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी ने चितà¥à¤°à¤•ूट जाने की आजà¥à¤žà¤¾ दी। आप चितà¥à¤°à¤•ूट के जंगल में विचरण कर रहे थे तà¤à¥€ दो राजकà¥à¤®à¤¾à¤° - à¤à¤• साà¤à¤µà¤²à¤¾ और à¤à¤• गौरवरà¥à¤£ धनà¥à¤·-बाण हाथ में लिये, घोड़ेे पर सवार à¤à¤• हिरण के पीछे दौड़ते दिखायी पड़े। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी ने आ कर पूछा, \"कà¥à¤› देखा? गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने जो देखा था, बता दिया। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी ने कहा,\'वे ही राम लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ थे।\' वि.सं. १६०ॠका वह दिन। उस दिन मौनी अमावसà¥à¤¯à¤¾ थी। चितà¥à¤°à¤•ूट के घाट पर तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ जी चंदन घिस रहे थे। तà¤à¥€ à¤à¤—वानॠरामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी उनके पास आये और उनसे चनà¥à¤¦à¤¨ माà¤à¤—ने लगे। गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखा तो देखते ही रह गये। à¤à¤¸à¥€ रà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤¶à¤¿ तो कà¤à¥€ देखी ही नहीं थी। उनकी टकटकी बंध गयी। उस दिन रामनवमी थी। संवत १६३१ का वह पवितà¥à¤° दिन। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी की आजà¥à¤žà¤¾ और पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ से गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने रामचरितमानस लिखना पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकिया और दो वरà¥à¤·, सात महीने तथा छबà¥à¤¬à¥€à¤¸ दिन में उसे पूरा किया। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी पà¥à¤¨: पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने रामचरितमानस सà¥à¤¨à¥€ और आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ दिया, \'यह रामचरितमानस तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ कीरà¥à¤¤à¤¿ को अमर कर देकी।\' सचà¥à¤šà¤°à¤¿à¤¤à¥à¤° होने के कारण आप के हाथ से कà¥à¤› न कà¥à¤› चमतà¥à¤•ार हो जाते थे। à¤à¤• बार उनके आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ से à¤à¤• विधवा का पति जीवित हो उठा। यह खबर बादशाह तक पहà¥à¤à¤šà¥€à¥¤ उसने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बà¥à¤²à¤¾ à¤à¥‡à¤œà¤¾ और कहा, \'कà¥à¤› करामात दिखाओ।\' गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने कहा कि \'रामनाम\' के अतिरिकà¥à¤¤ मैं कà¥à¤› à¤à¥€ करामात नहीं जानता। बादशाह ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कैद कर लिया और कहा कि जब तक करामात नहीं दिखाओगे, तब तक छूट नहीं पाओगे। तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ जी ने हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ की। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥ जी ने बंदरों की सेना से कोट को नषà¥à¤Ÿ करना पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ किया। बादशाह इनके चरणों पर गिर पड़े और उनसे कà¥à¤·à¤®à¤¾à¤¯à¤¾à¤šà¤¨à¤¾ की। तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ जी के समय में हिंदॠसमाज में अनेक पंथ बन गये थे। मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के निरंतर आतंक के कारण पंथवाद को बल मिला था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने रामायम के माधà¥à¤¯à¤® से वरà¥à¤£à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® धरà¥à¤®, अवतार धरà¥à¤®, साकार उपासना, मूरà¥à¤•ितà¥à¤¤à¤ªà¥‚जा, सगà¥à¤£à¤µà¤¾à¤¦, गो-बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ रकà¥à¤·à¤¾, देवादि विविध योनियों का समà¥à¤®à¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ संसà¥à¤•ृति और वेदमारà¥à¤— का मणà¥à¤¡à¤¨ तथा ततà¥à¤•ालीन मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ और सामाजिक दोषों का तिरसà¥à¤•ार किया। वे अचà¥à¤›à¥€ तरह जानते थे कि राजाओं की आपसी फूट और समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ वाद के à¤à¤—ड़ों के कारण à¤à¤¾à¤°à¤¤ में मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ विजयी हो रहे हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गà¥à¤ªà¥à¤¤ रà¥à¤ª से यही बातें रामचरितमानस के माधà¥à¤¯à¤® से बतलाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया किंतॠराजाशà¥à¤°à¤¯ न होने के कारण लोग उनकी बात समठनहीं पाये और रामचरितमानस का राजनीतिक उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ सफल नहीं हो पाया। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ रामचरितमानस को तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ जी ने राजनीतिक शकà¥à¤¤à¤¿ का केनà¥à¤¦à¥à¤° बनाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ नहीं किया फिर à¤à¥€ आज वह गà¥à¤°à¤‚थ सà¤à¥€ मत-मतावलमà¥à¤¬à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पूरà¥à¤£ रà¥à¤ª से मानà¥à¤¯ है। सब को à¤à¤• सूतà¥à¤° में बाà¤à¤§à¤¨à¥‡ का जो कारà¥à¤¯ शंकराचारà¥à¤¯ ने किया था, वही कारà¥à¤¯ बाद के यà¥à¤— में गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ जी ने किया। गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ ने अधिकांश हिदू à¤à¤¾à¤°à¤¤ को मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ होने से बचाया। आप के लिखे बारह गà¥à¤°à¤‚थ अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं - दोहावली, कवितà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤¯à¤£, गीतावली, रामचरित मानस, रामलला नहछू, पारà¥à¤µà¤¤à¥€à¤®à¤‚गल, जानकी मंगल, बरवै रामायण, रामाजà¥à¤žà¤¾, विन पतà¥à¤°à¤¿à¤•ा, वैरागà¥à¤¯ संदीपनी, कृषà¥à¤£ गीतावली। इसके अतिरिकà¥à¤¤ रामसतसई, संकट मोचन, हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ बाहà¥à¤•, रामनाम मणि, कोष मञà¥à¤œà¥‚षा, रामशलाका, हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ चालीसा आदि आपके गà¥à¤°à¤‚थ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं। १२६ वरà¥à¤· की अवसà¥à¤¥à¤¾ में संवतॠ१६८० शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ शà¥à¤•à¥à¤² सपà¥à¤¤à¤®à¥€, शनिवार को आपने असà¥à¤¸à¥€ घाट पर अपना शहरी तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया। संवत सोलह सै असी, असी गंग के तीर। शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ शà¥à¤•à¥à¤²à¤¾ सपà¥à¤¤à¤®à¥€, तà¥à¤²à¤¸à¥€ तजà¥à¤¯à¥‹ शरीर।।.
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